Friday, November 11, 2016
अभी भी हम डरे-से, सेहमे से काल के एक कोने मैंबैठे है।.वैसे ये रात जहां हम है, एक काले घेरे की तरह है।..घूमा फिरा कर बेदर्दीसे वहीं ले आती है जहां से हम निकले थे।. जहां छोर होने का एहसास हो जाता है वहींदो घड़ी रुक कर सास ले लेते है।.सूरज का इंतज़ार है पर डर है कहीं इस अंधेरे कीपरछाई उस बेखौफ धूप पर भी भारी ना पड जाये..खाली हाथों की उंगलियाँ सिर्फ हिम्मतबांधे हुये है और कुछ नहीं।..
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