बातों से बातों तक
बातों से बिखरती कुछ नई बातें, उनमे से उल्हज्ती और उलझनों को सुलझाती हुई और बातें, अंगडाइयां लेती हुई सुबह-सी बातें, रात की गहराई नापती धुंधलाती बातें... युहीं बातों से बातों तक, उन सभी लम्हों को समेट कर मेरी आंखों ने इस झील के किनारे रख छोडा है..इन बातों को किनारों से उमड़ कर झील के शांत पानी पर लहराते देख रही हूँ ..उसी बातों के पानी से अपना चेहरा छूकर जब मैंने झील में झाँका तोः एक नही, दो चेहरे देखे, एक मेरा, एक तुम्हारा...